इंसान तरक्की कर रहा है
आधुनिक युग का इंसान खूब तरक्की कर रहा है
दिन दुगुनी रात चौगुनी कर रहा है
हो भी क्यूँ न!
उन्नत प्रौद्योगिकी युग है
घंटों का काम मिनटों में संभव है
अभियांत्रिकी की देन है यह अद्भुत क्रांति
पैसा इफ़रात है,
और अर्जित करने में लगा हुआ है आदमी
मंहगाई जो सीमाएं लांघ रही है
पर धनोपार्जन की इस अंधी दौड़ में
ये इंसान अत्यंत खालीपन व रिक्तता से गुज़र रहा है
भावनाओं का खालीपन और रिश्तों में रिक्तता
इंसान यहाँ भी अप्रतीम तरक्की कर रहा है
दिन दुगुनी रात चौगुनी कर रहा है
समझ नहीं आता!
मंहगाई जो सीमाएं लांघ रही है
पर धनोपार्जन की इस अंधी दौड़ में
ये इंसान अत्यंत खालीपन व रिक्तता से गुज़र रहा है
भावनाओं का खालीपन और रिश्तों में रिक्तता
इंसान यहाँ भी अप्रतीम तरक्की कर रहा है
दिन दुगुनी रात चौगुनी कर रहा है
समझ नहीं आता!
इसे इंसान का उत्थान कहें या पतन?
धनोपार्जन की इस अंधी दौड़ में
जवाब देंहटाएंइंसान अत्यंत खालीपन व रिक्तता से गुज़र रहा है..
सुन्दर सृजन ।
तह-ए-दिल से शुक्रिया! आप पाठकों का प्यार बना रहे
हटाएंआभार!
महोदय कृपया ब्लॉग फॉलोअर्स गैजेट लगाइये ताकि आपके ब्लॉग को पाठक फॉलो करैं और आपकी नयी रचनाओं का अपडेट्स मिलता रहे हमें।
जवाब देंहटाएंसादर।
अनुसरण के लिए बटन अब उपलब्ध है
हटाएंतह-ए-दिल से शुक्रिया! आप पाठकों का प्यार बना रहे
आभार!
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार ३ अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
वाह...सुन्दर लेखन
हटाएंबढ़िया ब्लॉग..
जवाब देंहटाएंकृपया ब्लॉग फालो करने का गैजट लगाइए
सादर..
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हटाएंतह-ए-दिल से शुक्रिया! आप पाठकों का प्यार बना रहे
आभार!
इतनी बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंपाठक के अभाव में दम तोड़ती नज़र आती है
आप पढ़िए स्वयं अपनी ही रचना
...
ख़ुमारी...
ख़ुमारी पुरानी तस्वीरों की
ख़ुमारी पुराने लम्हातों की
ख़ुमारी पुराने रिश्तों की
ख़ुमारी पुराने जज़्बातों की
ये ख़ुमारी अच्छी है
तब तक जब तक
किसी बीमारी में न तबदील हो जाये
ख़ुमारी में रहो इस वक़्त की
ख़ुमारी में रहो मुसाफ़िर-ए-सम्त की
ख़ुमारी में रहो अपनों के उल्फ़त की
ख़ुमारी में रहो बू-ए-मोहब्बत की
इस ख़ुमारी में डूबे रहो
तब तक जब तक
ये ज़िन्दगी ख़ुदा के हाथों ज़ब्त न हो जाये
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...आप पाठकों का प्यार बना रहे
हटाएंआभार!
भावनाओं का खालीपन और रिश्तों में रिक्तता
जवाब देंहटाएंइंसान यहाँ भी अप्रतीम तरक्की कर रहा है
दिन दुगुनी रात चौगुनी कर रहा है
समझ नहीं आता!
इसे इंसान का उत्थान कहें या पतन?
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...आप पाठकों का प्यार बना रहे
हटाएंआभार!
वाकई सोचने वाली बात है, एक तरफ शांति की बात करता है मानव दूसरी तरफ हथियारों का जखीरा इकठ्ठा किये जा रहे है देश एक दूसरे के खिलाफ,
जवाब देंहटाएंहाँ यह भी एक पहलू है
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