तन यहाँ मन कहाँ-कहाँ
प्रेम बिनु पंछी खिड़े जहाँ-तहाँ
वो विवाहित या विवाहिता
जिसके हिस्से प्रेम नहीं पड़ता
बड़े अभागे कहलाते हैं
यह और भी हृदय का शूल
साबित होता है जब
जोड़े में से कोई एक
कलुषित प्रेम में उद्भ्रांत हो
जोड़े में से कोई एक
कलुषित प्रेम में उद्भ्रांत हो
वंश के विस्तार हेतु किया गया
बिस्तर वाला कर्तव्यबद्ध-प्रेम
या कामुकता की नैसर्गिक तृष्णा शांत करने हेतु
की गई उत्साहित यौन-क्रीड़ा
एक शरीरिक संबंध तो स्थापित कर सकता है
प्रेम नहीं
प्रेम की वास्तविक अनुभूति
की गई उत्साहित यौन-क्रीड़ा
एक शरीरिक संबंध तो स्थापित कर सकता है
प्रेम नहीं
प्रेम की वास्तविक अनुभूति
किसी छुअन का मोहताज नहीं
किसी की स्नेहिल आँखों को देखकर भी
एक सात्विक प्रेम की नींव रखी जा सकती है
दो लोगों के परिणय में
किसी की स्नेहिल आँखों को देखकर भी
एक सात्विक प्रेम की नींव रखी जा सकती है
दो लोगों के परिणय में
पारस्परिक प्रेम की गुंजाइश हमेशा हो सकती है
इसे समझौता हमने ही बनाया है
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कलुषित- अपवित्र, निंदित
उद्भ्रांत- भटका हुआ, गुमराह
नैसर्गिक- स्वाभाविक, प्राकृतिक
प्रेम की वास्तविक अनुभूति
जवाब देंहटाएंकिसी छुअन का मोहताज नहीं
किसी की स्नेहिल आँखों को देखकर भी
एक सात्विक प्रेम की नींव रखी जा सकती है.... वाह!प्रेम के गढ़ तत्व की अभिव्यक्ति!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...आभार
हटाएंप्रेम पर मौलिक चिंतन की सुंदर अभिव्यक्ति! बहुत अच्छा लिखा आपने !! हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका...आभार
हटाएंआप पाठकों का प्यार बना रहे
सुन्दर प्रेमिल अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका...आभार
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