इंसानों की एक खराब आदत है
हर चीज़ की आदत हो जाना
कुछ ठीक-ठाक वक़्त बीतने के बाद
एक चीज़ के साथ
चाहे वो एक स्थिति-परिस्थिति हो
या कम-ज़्यादा समय तक साथ रहने वाले इंसान हों
या फ़िर जीवन के अन्य छोटे-बड़े परिवर्तन
इंसान उसके साथ जीने का आदी हो जाता है
अब नहीं तो तब
लेकिन,
जब दूसरे
इंसान उसके साथ जीने का आदी हो जाता है
अब नहीं तो तब
यह सही भी है,पर
कुछ मौकों पर
यह उसे जीने का हौसला देती हैप्रतिकूल समय में
लेकिन,
जब बदतर से बदतरीन स्थिति हो चारों ओर
हलाहल के कड़वे घूँट पी रहे हों लोग
और मौत के घाट उतर रहे हों
तो आदमी ज़रा अपनी इस
तो आदमी ज़रा अपनी इस
"किसी भी चीज़ की आदत हो जाने की आदत"
से परहेज़ करे
लाशों के साथ जीने का भी कहीं आदी न हो जायेकहीं भाव-शून्य न हो जायऔरअपनी ज़िंदगी उसी बेपरवाही-बेफ़िक्री मेंउन्मत्त होकर न जियेके जैसे सब सामान्य ही हो
जब दूसरे
एक कुचक्र
में फंसकर दम तोड़ रहे हों
तो "नैतिकता" तो यह है कि
मानस उनका मर्म जाने
अपनी आँखें आर्द्र करे
ऐसे जटिल समस्या का शीघ्र निदान हो,
ईश्वर से प्रार्थना करे
अपनी गति थोड़ी धीमी करे
और अपने हाथ-पैर समेट कर जिये
मानस उनका मर्म जाने
अपनी आँखें आर्द्र करे
ऐसे जटिल समस्या का शीघ्र निदान हो,
ईश्वर से प्रार्थना करे
अपनी गति थोड़ी धीमी करे
और अपने हाथ-पैर समेट कर जिये
करुणा पैदा करे औरजीवित लोगों के काम आए
दुखियारों का कष्ट हरे
उनके लिये एक उम्मीद की किरण बनेठिठकते जीवन में चंद साँसें और जोड़ेकुछ अपनी कहे, ज़्यादा उनकी सुनेथोड़ा और मनुष्य बनेथोड़ा और मनुष्य बने
उनके लिये एक उम्मीद की किरण बने
जवाब देंहटाएंठिठकते जीवन में चंद साँसें और जोड़े
कुछ अपनी कहे, ज़्यादा उनकी सुने
थोड़ा और मनुष्य बने
थोड़ा और मनुष्य बने---अच्छी रचना...।
बहुत बहुत धन्यवाद सर!!!
जवाब देंहटाएंआभार