"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

कठपुतली



इंसान यूँ तो है ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना
पर है उसे व्यर्थ ही समय नष्ट करना
अपने भवितव्य से अनजान
रहे सदा व्याकुल, न पावे त्राण

करके जल्द सारे पड़ावों को पार
शीघ्र ही करना उसे भवसागर पार
हड़बड़ी में जाता जीना भूल
फ़िर वैकुंठ की तैयारी में रहता मशगूल

एक बित्ता जमीन हथियाने पापी जाल बुने
अंततः सब पीछे छोड़ खाली हाथ चले
वह मूढ़, तनिक ये न समझे
पृथ्वी जीतने बड़े-बड़े तुर्रमखां आये
पृथ्वी वहीं है, वे अतुल व्योम में चले गये

शांति हेतु परिजन को दूर-सुदूर करे
अशांत ही परलोक की ओर कूच करे
जीवन-भर जिस निजता का पाठ पढ़ें
वही निज-जन खड़ी उनकी खाट करें

सुख-साधन के पीछे सारा जीवन खपाय
अंततः माटी का शरीर माटी में मिल जाय
कुछ बनने की ज़िद में सारी उमर बिताय
रहेगा कठपुतली ही, न हो कदाचित् व्यग्र हाय!

कौन समझाए? ये संसार है तो बस
ईश्वर की रचनात्मकता का नमूना, जैसे
मैं लिखूँ कविता, तुम बनाओ कलाकृतियाँ
बढ़ई बनाये फर्नीचर, कुम्हार बनाये मूर्तियाँ
ठीक वैसे, है विधाता ने ये संसार बनाया
अपनी सृजनात्मकता का है मिसाल दिया

इस दुनिया का और कोई गूढ़ रहस्य नहीं
तुम्हारे आने का कोई विशेष उपलक्ष्य नहीं
सफल हो या निष्फल रहो
तुम तो बस सद्कर्म करो

चार दिन की है ज़िन्दगी
अनंत असीम अपरिमित जियो
मुकुलित मुदित तरंगित जियो
मुकुलित मुदित तरंगित जियो


शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

क्षुद्रता



दुख होता है तुम्हारी क्षुद्रता देखकर
अरे हाँ! तुम्हारी सोच की क्षुद्रता देखकर
बिना जाने ही अपनी राय बना लेते हो
किसी की बस सूरत देख उसकी कुंडली निकाल लेते हो
किसी के पहनावे को देख उसका चरित्र बता देते हो
मंदिर में देवी की पूजा करते हो
और सड़क पर जाती लड़की के तन-मन को चुभती नजरों से  भेदते हो
गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ाते हो
और अमीरों की अमीरी से जलते हो 
किसी की ख़ामोशी को उसकी कमज़ोरी समझ लेते हो
तो किसी के बड़बोलेपन को बदसलूकी
किसी को अपना हमराज़ बताते हो और उसी के राज़ को राज़ नहीं रखते
बाहर लोगों को तहज़ीब सिखाते हो
घर में माँ को खरी-खोटी सुनाते हो  
कैसे कर लेते हो ये सब... 
दुख होता है तुम्हारी क्षुद्रता देख कर
अरे हाँ! तुम्हारी सोच की क्षुद्रता देखकर

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

समझौता



लो कर लिया समझौता देकर अपने प्यार का बलिदान
पर माफ़ करना उसे पूरी तरह अपना न सकी

लो हो गयी सुहागन, कर लिया ख़ुद को इश्क़-गली में बदनाम
पर माफ़ करना तेरे सिंदूरी इश्क़ को ठुकरा न सकी

लो कर दिया कल रात अपने जिस्म को नीलाम
पर माफ़ करना तुम्हारे प्यार को न कर सकी

लो दे दिया उसे छूने का हक़ रख के ताख पर दीन-ओ-ईमान
पर माफ़ करना तेरी छुअन को न भुला सकी

लो कर दिया अपने अधरों को किसी और के नाम
पर माफ़ करना तेरी अधरों के स्पर्श को बिसरा न सकी

लो अब रोज़ो-शब रहेगी महफ़ूज़ किसी और की हिफ़ाज़त में तुम्हारी जान
पर माफ़ करना तेरी बाहों की गिरफ़्त में मिला जो सुकून पा न सकी

लो दे दिया धोखा ख़ुद को भी और हो गयी उसकी तमाम
पर माफ़ करना फ़िर भी तेरा दर्जा उसे दे न सकी

लो कर ली कोशिश के लिख दूँ दिल पे किसी और का नाम
पर माफ़ करना मेरी धड़कनों पर है इक तेरा ही नाम, 
इस बात को झुठला न सकी

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

सच की तलाश



निकला हूँ सच की तलाश में मैं
इक दिन सवेरा होगा, हूँ बस इसकी आस में मैं
क्या बताऊँ क्या-क्या घट रहा रोज़ाना?
उठती है भीतर इक टीस
होता हूँ यह सब देख बहुत उदास-सा मैं

यूँ तो टुकड़ों-सा बिखर जाऊँ पर
ये जो हलाहल है फैला हुआ, यत्र तत्र सर्वत्र
नष्ट हो जाएगा
जोड़े रखता हूँ ख़ुद को इसी विश्वास से मैं

जाने कितने बहरूपियों से होती है भेंट
उनके पाखंड की अनुभूति होते हुए भी,
करता हूँ उनको सहृदय स्वीकार मैं
यूँ के मैं ही नहीं हूँ सच का पुतला,
मैं ही नहीं हूँ अकेला रोशनी का चिराग़
और ना ही इस पापी और विषैली दुनिया के
अंधेरे का नाश करने में सक्षम हूँ मैं
पर क्या करूँ?
ग़ुबार आख़िर किस हद तक अंदर रखूँ मैं

नहीं होगी दिनकर-सी क्रांति मेरी कविताओं में
पर कलम की ताक़त पे थोड़ा तो विश्वास रखता हूँ मैं
आज जब हम चाँद की सतह तक अनुसंधान को चले हैं
भू-मंडल के अस्तित्व पर जो प्रश्न-चिन्ह लगा है
उसके उत्तर की तलाश में हूँ मैं
हाँ! निकला हूँ सच की तलाश में मैं
इक दिन सवेरा होगा, हूँ बस इसकी आस में मैं

खुशी है एक मृगतृष्णा

कभी किसी चेहरे को गौर से देखा है हर मुस्कुराहट के पीछे ग़म हज़ार हैं क्या खोया क्या पाया, हैं इसके हिसाब में लगे हुए जो है उसकी सुद नहीं, जो...