सब एक-दूसरे को धक्का दे भागने लगे आयें-बांयें
सारे उस धधकती आग के डर से चीखने-पुकारने लगे
कुछ तो आनन-फानन में खिड़की से ही कूदने लगे
तो कुछ उस जानलेवा आग की लपटों में झुलसने लगे
और अंततः मौत की भेंट चढ़ गए
जब कोई आपदा आती है तब बुद्धि किसकी काम करती है भला
और दूसरे लोग तो बस तमाशबीन
स्मार्टफोन निकाला और लगे वीडियो बनाने
सारी मानसिकता व नैतिकता रख दी है ताख पर
और दूसरे लोग तो बस तमाशबीन
स्मार्टफोन निकाला और लगे वीडियो बनाने
सारी मानसिकता व नैतिकता रख दी है ताख पर
जाने कौन-सी आग की लपटों का शिकार हो गई है मनुष्यता
बहुत भारी त्रासदी है ये हमारी 'टेक-सैवी' पीढ़ी का
बहुत भारी त्रासदी है ये हमारी 'टेक-सैवी' पीढ़ी का
मानो या ना मानो!!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 09 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद...आभार!
हटाएंसही कहा मनवता का पतन विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंआने वाली पीढ़ियों के लिए सहेजी जा रही धरोहर क्या सचमुच बेशकीमती है? ऐसे अनेक प्रश्न आज तमाशबीन हैं।
सादर।
मानवता ढलान से लगातार गिरती ही जा रही है
हटाएंमहोदय कमेंट मॉडरेशन की आवश्यकता क्यों?
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया करने वाले निराश होते हैं।
बाकी आपकी इच्छा।
सादर।
माफ़ कीजियेगा, गलती से हो गया था
हटाएंआप पाठकों का प्यार बना रहे...
दुखदाई कालखंड ही है ।
जवाब देंहटाएंजी हाँ! यही बात है
हटाएंसंवेदना शून्य समाज
जवाब देंहटाएंजी हाँ! संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है समाज में
हटाएंबहुत ही चिंतन मनन करने को विवश करती एक अच्छी पोस्ट।हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर 🙏🙏
हटाएंआज ये कैसी मानसिकता हो गयी है ?
जवाब देंहटाएंसटीक लिखा है ।