"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

त्रासदी



आग लगी, भगदड़ मची, शोर हुआ
सब एक-दूसरे को धक्का दे भागने लगे आयें-बांयें
सारे उस धधकती आग के डर से चीखने-पुकारने लगे
कुछ तो आनन-फानन में खिड़की से ही कूदने लगे
तो कुछ उस जानलेवा आग की लपटों में झुलसने लगे
और अंततः मौत की भेंट चढ़ गए
जब कोई आपदा आती है तब बुद्धि किसकी काम करती है भला
और दूसरे लोग तो बस तमाशबीन
स्मार्टफोन निकाला और लगे वीडियो बनाने
सारी मानसिकता व नैतिकता रख दी है ताख पर
जाने कौन-सी आग की लपटों का शिकार हो गई है मनुष्यता
बहुत भारी त्रासदी है ये हमारी 'टेक-सैवी' पीढ़ी का
मानो या ना मानो!!!

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 09 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सही कहा मनवता का पतन विचारणीय है।
    आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेजी जा रही धरोहर क्या सचमुच बेशकीमती है? ऐसे अनेक प्रश्न आज तमाशबीन हैं।
    सादर।

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    1. मानवता ढलान से लगातार गिरती ही जा रही है

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  3. महोदय कमेंट मॉडरेशन की आवश्यकता क्यों?
    प्रतिक्रिया करने वाले निराश होते हैं।
    बाकी आपकी इच्छा।
    सादर।

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    उत्तर
    1. माफ़ कीजियेगा, गलती से हो गया था

      आप पाठकों का प्यार बना रहे...

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. जी हाँ! संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है समाज में

      हटाएं
  5. बहुत ही चिंतन मनन करने को विवश करती एक अच्छी पोस्ट।हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. आज ये कैसी मानसिकता हो गयी है ?
    सटीक लिखा है ।

    जवाब देंहटाएं

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