"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

धुँधली तस्वीर

कुछ तस्वीरें धुँधली-सी खिंच जाती हैं
जिन्हें लोग फ़िज़ूल समझकर फ़ोन 
अथवा 
कैमरे की मेमोरी से डिलीट कर देते हैं
एक परफ़ेक्ट तस्वीर खिंचने से पहले की
दर्जनों नाकामयाब कोशिशों का संकलन है ये धुँधली तस्वीरें
पर इन धुँधली तस्वीरों का अधूरापन ही मुझे भाता है
जाने क्यूँ ?
ये इम्परफ़ेक्ट तस्वीरें ही मुझे परफ़ेक्ट लगती हैं
ये अधिक सच्ची लगतीं हैं मुझे
इस धुँधलके में कहीं न कहीं व्यक्ति की वास्तविक मन:स्थिति का भान होता है
पूरी साफ़-सुथरी परफ़ेक्ट तस्वीरों में एक मिलावट-सी लगती है
जैसे दूध में पानी की मिलावट
कच्चे और पक्के फल की मिलावट
व्यक्ति अपने मूल भाव-दशा में नहीं रहता 
परफ़ेक्ट दिखने की होड़ में
चित्तवृत्ति पे ज्यूँ ओढ़ लिया हो एक छद्मपूर्ण आवरण
आत्मा ने ज्यूँ धारण कर ली हो एक भ्रामक काया

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