"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

चलो आज रंगों की बात करें

 


चलो आज रंगों की बात करें
ढोल ताशे मृदंग बाजे
प्रकृति मोहक सिंगार साजे
महकी फ़िज़ाओं में प्यार पले
चलो आज खुशरंगों की बात करें

अड़चन छोड़ युक्ति सोचें
पतझड़ बीते वसंत झूमे
दिल में एक नया उमंग भरें
चलो आज रोशनी की बात करें

घृणा नहीं प्रेम दें
उर में देवाकृति उकेर दें
सबसे गले मिल
चलो अब मेल-मिलाप करें
चलो आज रंगों की बात करें

दुःस्वप्न भूल मृदु-स्वप्न जियें
कुंठा व म्लान त्याग,
चलो उत्सवों की बात करें
मौत पसरा हो भले ही क्यूँ न
चलो आज ज़िंदगी की बात करें
चलो आज रंगों की बात करें

रंग-गुलाल-सा जीवन खिले
काँटे नहीं गुलाब मिलें
मरु पे सहसा दूब उगे
आओ पुनः फूंक आशाओं की भरें
चलो आज रंगों की बात करें

हम मन-मलंग हों
निखरा हरेक अंग हो
हर रोज़ नूतन शिखर छूएं
चलो आज बुंलदियों की बात करें
चलो आज रंगों की बात करें

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

धुँधली तस्वीर

कुछ तस्वीरें धुँधली-सी खिंच जाती हैं
जिन्हें लोग फ़िज़ूल समझकर फ़ोन 
अथवा 
कैमरे की मेमोरी से डिलीट कर देते हैं
एक परफ़ेक्ट तस्वीर खिंचने से पहले की
दर्जनों नाकामयाब कोशिशों का संकलन है ये धुँधली तस्वीरें
पर इन धुँधली तस्वीरों का अधूरापन ही मुझे भाता है
जाने क्यूँ ?
ये इम्परफ़ेक्ट तस्वीरें ही मुझे परफ़ेक्ट लगती हैं
ये अधिक सच्ची लगतीं हैं मुझे
इस धुँधलके में कहीं न कहीं व्यक्ति की वास्तविक मन:स्थिति का भान होता है
पूरी साफ़-सुथरी परफ़ेक्ट तस्वीरों में एक मिलावट-सी लगती है
जैसे दूध में पानी की मिलावट
कच्चे और पक्के फल की मिलावट
व्यक्ति अपने मूल भाव-दशा में नहीं रहता 
परफ़ेक्ट दिखने की होड़ में
चित्तवृत्ति पे ज्यूँ ओढ़ लिया हो एक छद्मपूर्ण आवरण
आत्मा ने ज्यूँ धारण कर ली हो एक भ्रामक काया

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

ये चुप्पी क्यूँ?

 

भरे बाज़ार हो जब किसी नारी का चीरहरण
हलधर त्यागे प्राण जब न पावे वाजिब दाम, 
दलहन हो या तिलहन
सेना की शहादत पर हो जब भरपूर राजनीतिकरण
गौ-रक्षा के नाम पे हो जब बेकसुरों का मरण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

सत्ताविरोध पर जब लग जाए देशद्रोह का लांछन
चुनाव में बहे बेहिसाब पैसा जब करके राष्ट्रकोष-गबन
विकास के नाम पे हो जब 'फ़ेक न्यूज़' का वितरण
वोटों के लिए जब हो सरेआम खरीद-फ़रोख़्त का चलन
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

पप्पू, चोर व नीच जैसे अपशब्दों से जब भरा हो राजनैतिक भाषण
एक दल की पराजय हेतु जब बनने लग जाए 'महागठबंधन'
किसने किये कितने घोटाले, होने लगे जब इस बात का 'कॉम्पिटिशन'
टीवी चैनलों पर होने लगे जब निरा झूठ का प्रसारण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

अर्थशास्त्री की बग़ैर सुने जब कर दिया जाए 'डीमोनिटाइजेशन'
संसद में आँख मारने या गले पड़ने का जब हो जाए चलन
लगातार बारंबार जब होने लगे मानवाधिकार हनन
'सत्तर साल' बाद भी जब शिक्षा व स्वास्थ्य का ना हो पाया हो सशक्तिकरण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

जय श्री राम औ' चंडीपाठ से जब राजतंत्री करें सम्मोहन
अतिरिक्त विचारों का जब होने लगे सर्वस्व उन्मूलन
एमपी एमएलए की चोरी से हो जब विधिवत सरकार गठन
अमर्यादित मूल्य बढ़ोतरी से दूभर हो जाये जब भरण-पोषण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

सड़क-पानी-बिजली-इंटरनेट छोड़ हो जब मंदिर-मस्जिद का उल्लेखन
सत्ता-लोलुप कभी बनें मोहम्डन तो कभी जनेऊधारी ब्राह्मण
वोट बैंक और सत्तालोभ वश जब भ्रष्टाचारियों व अतंकियों का हो नामांकन
देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम की जब बदल दी जाए 'डेफिनिशन'
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

इन्क़िलाब


चेहरे पे ओढ़े रखता हूँ चादर शीरीन मुस्कान की
जो दिल की लिखूँगा तो इन्क़िलाब लिखूँगा

ख़ामोशी का ही पहरा रहता है मेरे ज़हन में अक़्सर

पन्नों पर फटूँगा तो सैलाब लिखूँगा

दुनियां की इस मोह-माया से यूँ तो परे हूँ

ग़र जो बन पाया तो अपने महबूब का इंतिख़ाब बनूँगा

हक़ीक़त में ही जीना पसंद है मुझे पर

कल कैसा हो जो कोई पूछे तो मैं अपना ख़्वाब लिखूँगा

तुम दुश्मन भले हो मेरे, लाख नफ़रत सही

किसी गली,किसी चौक पर मिले तो मैं तुम्हें गुलाब दूँगा

हर ग़ज़ल हर नज़्म वतन के नाम करूँ मैं
जहाँ कहीं भी रहूँ, मैं अपनी मिट्टी से प्यार बेहिसाब करूँगा

खुशी है एक मृगतृष्णा

कभी किसी चेहरे को गौर से देखा है हर मुस्कुराहट के पीछे ग़म हज़ार हैं क्या खोया क्या पाया, हैं इसके हिसाब में लगे हुए जो है उसकी सुद नहीं, जो...