"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

ये चुप्पी क्यूँ?

 

भरे बाज़ार हो जब किसी नारी का चीरहरण
हलधर त्यागे प्राण जब न पावे वाजिब दाम, 
दलहन हो या तिलहन
सेना की शहादत पर हो जब भरपूर राजनीतिकरण
गौ-रक्षा के नाम पे हो जब बेकसुरों का मरण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

सत्ताविरोध पर जब लग जाए देशद्रोह का लांछन
चुनाव में बहे बेहिसाब पैसा जब करके राष्ट्रकोष-गबन
विकास के नाम पे हो जब 'फ़ेक न्यूज़' का वितरण
वोटों के लिए जब हो सरेआम खरीद-फ़रोख़्त का चलन
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

पप्पू, चोर व नीच जैसे अपशब्दों से जब भरा हो राजनैतिक भाषण
एक दल की पराजय हेतु जब बनने लग जाए 'महागठबंधन'
किसने किये कितने घोटाले, होने लगे जब इस बात का 'कॉम्पिटिशन'
टीवी चैनलों पर होने लगे जब निरा झूठ का प्रसारण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

अर्थशास्त्री की बग़ैर सुने जब कर दिया जाए 'डीमोनिटाइजेशन'
संसद में आँख मारने या गले पड़ने का जब हो जाए चलन
लगातार बारंबार जब होने लगे मानवाधिकार हनन
'सत्तर साल' बाद भी जब शिक्षा व स्वास्थ्य का ना हो पाया हो सशक्तिकरण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

जय श्री राम औ' चंडीपाठ से जब राजतंत्री करें सम्मोहन
अतिरिक्त विचारों का जब होने लगे सर्वस्व उन्मूलन
एमपी एमएलए की चोरी से हो जब विधिवत सरकार गठन
अमर्यादित मूल्य बढ़ोतरी से दूभर हो जाये जब भरण-पोषण
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

सड़क-पानी-बिजली-इंटरनेट छोड़ हो जब मंदिर-मस्जिद का उल्लेखन
सत्ता-लोलुप कभी बनें मोहम्डन तो कभी जनेऊधारी ब्राह्मण
वोट बैंक और सत्तालोभ वश जब भ्रष्टाचारियों व अतंकियों का हो नामांकन
देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम की जब बदल दी जाए 'डेफिनिशन'
तब लाज़मी है पूछना के ये चुप्पी क्यूँ?

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