"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 28 मई 2021

साँसों का पहिया

 


बीती रात एक परिचित की मृत्यु हुई
सभी परिजन, मित्र, आस-पड़ोस मोहल्ले वाले
शोक में डूब गये, 
जो कि स्वाभाविक है
मैं भी, जो सख़्त मानता है ख़ुद को
अपने आँसुओं को न रोक सका

इस घटनास्थल से हज़ारों मील दूर
आज मेरे एक मित्र के घर शिशु का जन्म हुआ
सब हर्षोल्लास से मंगलगान गाने लगे
हो भी क्यूँ न, 
विवाह के सात साल बाद संतान-सुख की प्राप्ति हुई

नवजात की निश्छल निर्मल मुस्कान देखकर
मेरा निजी दुःख भी थोड़ा कम हुआ
और 
अब तक जो निराशा ने जगह घेर रखी थी
वहाँ एक आशा जगी

संभवतः वही आत्मा पुनः अवतरित हुई होगी
चौरासी लाख योनियों में से चुनकर एक,
सर्वश्रेष्ठ मनुष्य योनि में
क्या पता?

ऐसे ही तो चलता है न इस मही पर
अनगिनत साँसों के पहिये पर 
भीमकाय जीवन-रूपी रथ
और हज़ारों-करोड़ों साल से
चलती आ रही है ये संसृति,
निरंतर...क्यूँ?

एक का पहिया रुका नहीं
कि दूजे का चलायमान हो जाता है
उसी बिंदु से, उसी क्षण,
उस बिंदु की विशाल परिधि में ही
कोसों दूर या आस-पास ही कहीं

पवित्र गीता में भी तो यही लिखा है न
लोगों का आना-जाना यूँ ही लगा रहेगा 
चिरकाल तक
सृष्टि चलती रहेगी नियमतः
बिना रोक-टोक के

शुक्रवार, 21 मई 2021

आदत हो जाने की आदत

 


इंसानों की एक खराब आदत है
हर चीज़ की आदत हो जाना
कुछ ठीक-ठाक वक़्त बीतने के बाद
एक चीज़ के साथ
चाहे वो एक स्थिति-परिस्थिति हो
या कम-ज़्यादा समय तक साथ रहने वाले इंसान हों
या फ़िर जीवन के अन्य छोटे-बड़े परिवर्तन
इंसान उसके साथ जीने का आदी हो जाता है
अब नहीं तो तब

यह सही भी है,
पर 
कुछ मौकों पर
यह उसे जीने का हौसला देती है
प्रतिकूल समय में

लेकिन,
जब बदतर से बदतरीन स्थिति हो चारों ओर
हलाहल के कड़वे घूँट पी रहे हों लोग
और मौत के घाट उतर रहे हों
तो 
आदमी ज़रा अपनी इस
"किसी भी चीज़ की आदत हो जाने की आदत" 
से परहेज़ करे

लाशों के साथ जीने का भी कहीं आदी न हो जाये
कहीं भाव-शून्य न हो जाय
और 
अपनी ज़िंदगी उसी बेपरवाही-बेफ़िक्री में 
उन्मत्त होकर न जिये
के जैसे सब सामान्य ही हो

जब दूसरे 
एक कुचक्र 
में फंसकर दम तोड़ रहे हों
तो "नैतिकता" तो यह है कि
मानस उनका मर्म जाने
अपनी आँखें आर्द्र करे
ऐसे जटिल समस्या का शीघ्र निदान हो,
ईश्वर से प्रार्थना करे
अपनी गति थोड़ी धीमी करे
और अपने हाथ-पैर समेट कर जिये

करुणा पैदा करे और
जीवित लोगों के काम आए 
दुखियारों का कष्ट हरे
उनके लिये एक उम्मीद की किरण बने
ठिठकते जीवन में चंद साँसें और जोड़े
कुछ अपनी कहे, ज़्यादा उनकी सुने
थोड़ा और मनुष्य बने
थोड़ा और मनुष्य बने

शुक्रवार, 14 मई 2021

प्रकृति का कर्ज़



खरीदा हुआ दाना
खरीदा हुआ पानी
खरीदा हुआ अनल-अनिल
खरीदी हुई धरणी

 
इस उधार की ज़िंदगी में
बड़ी खरीदारी कर ली हमने
इस भ्रम में कि
प्रकृति के कर्ज़ से उऋण हो जाएंगे


मगर इस संभ्रम में
सभी वित्तीय कोष 
या तो खाली हो गये या
खाली होने के कगार पर हैं
और
हम कर्ज़दार के कर्ज़दार रह गये

शुक्रवार, 7 मई 2021

दंगा

 


जब कोई दंगा होता है
तो कहर बरपता है
अनगिनत मौतें होती हैं
ज़िंदगियाँ पायमाल हो जाती हैं
और उन सारी मौतों का हिसाब
महज़ आँकड़ों से नहीं लगाया जा सकता
मेरे तुम्हारे लिए होगी एक सुर्खी
या सुर्खियों में बताई गई सिर्फ़ एक संख्या

ज़रा उन मांओं से पूछो जिनकी गोद उजड़ गई
वो दर्द मिला जिसकी कोई दवा नहीं
उन दुल्हनों से पूछो जिनके दूल्हे शादी की अगली सुबह ही 
मौत की गहरी नींद में सो गए
हाथों की मेंहदी देख रो-रोकर होती है रात,
होता है दिन
उन मासूम बच्चों से पूछो जिनके सर से बाप का साया छिन गया
तमाम उम्र के लिये उनके हिस्से पिता-प्रेम नहीं आ पाया

हुक्मरानों को नहीं मालूम "दंगों की पीड़" क्या होती है
किसी अपने की मौत का ग़म क्या होता है
एक ग़लत हुक्म नहीं लिखते सिर्फ़
साथ ही एक तबाही का फ़रमान भी ज़ारी कर दिया जाता है
बहुत भारी तबाही
हर जली-टूटी दीवार चीख-चीखकर इस बात का
सबूत दे रही होती है
के उस रात क्या गुज़री

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

पारस्परिक प्रेम

 


तन यहाँ मन कहाँ-कहाँ
प्रेम बिनु पंछी खिड़े जहाँ-तहाँ
वो विवाहित या विवाहिता
जिसके हिस्से
प्रेम नहीं पड़ता
बड़े अभागे कहलाते हैं

यह और भी हृदय का शूल
साबित होता है जब
जोड़े में से कोई एक
कलुषित प्रेम में उद्भ्रांत हो

वंश के विस्तार हेतु किया गया
बिस्तर वाला कर्तव्यबद्ध-प्रेम
या कामुकता की नैसर्गिक तृष्णा शांत करने हेतु
की गई उत्साहित यौन-क्रीड़ा 
एक शरीरिक संबंध तो स्थापित कर सकता है
प्रेम नहीं

प्रेम की वास्तविक अनुभूति
किसी छुअन का मोहताज नहीं
किसी की स्नेहिल आँखों को देखकर भी
एक सात्विक प्रेम की नींव रखी जा सकती है

दो लोगों के परिणय में
पारस्परिक प्रेम की गुंजाइश हमेशा हो सकती है
इसे समझौता हमने ही बनाया है
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कलुषित- अपवित्र, निंदित
उद्भ्रांत- भटका हुआ, गुमराह 
नैसर्गिक- स्वाभाविक, प्राकृतिक 

खुशी है एक मृगतृष्णा

कभी किसी चेहरे को गौर से देखा है हर मुस्कुराहट के पीछे ग़म हज़ार हैं क्या खोया क्या पाया, हैं इसके हिसाब में लगे हुए जो है उसकी सुद नहीं, जो...