"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

क्या सच है क्या झूठ



क्या सच है क्या झूठ
सब नेता-राजतंत्री हैं मूक
राष्ट्र-गौरव को पहुँची है ठेंस
जाने कौन ने किया कलेस
इक ओर गणतंत्र की रम्य झांकी थी
दूजी ओर पत्थर व लाठी थी
लाल किले पर ज्यूँ फ़हराया मज़हबी ध्वज
माँ भारती ने त्युँ निज ताज दिया तज
सिपाही चतुर्दिक कर रहा संघर्ष था
बाहुबली अप्लापियों ने किया विध्वंस था

आंदोलन नहीं है यह
मर्यादा लांघी है
मज़दूर किसान के भेस में
कुछ उपद्रवी उत्पाती हैं
दंगे से क्या पूरी होगी मांग?
शांति छोड़ जो रचा यह स्वाँग
कैसे हो जय जवान जय किसान?
जब तिरंगे का हुआ विश्व-भर अपमान
दुःख है, किसानों का अहित हुआ
जो हुआ अनुचित अनिष्ट हुआ
जो हुआ अनुचित अनिष्ट हुआ

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

अख़बार



अख़बार में ख़बर आई
एक बस पुल से नीचे गिरी, 29 की मौत 50 घायल
ये ख़बर मेरे लिए सिर्फ़ एक ख़बर ही थी
जो पढ़ भी लिया और नहीं भी, 
बस ऐसा कुछ
होता है ना ! आदतन यूँ ही...हम अख़बार के पन्ने पलटते हैं और
कुछ छोटी कुछ बड़ी ख़बर पढ़ते हैं
वो हमारे लिए महज़ एक 'पीस ऑफ इन्फॉर्मेशन' होती है
मगर इस बार ये ख़बर घर कर गई
जब पता चला इस हादसे में कोई अपना भी था
मानो या ना मानो, एक ख़बर होती है
महज़ स्याही से लिखे हुए कुछ अक्षर, कुछ शब्द
पर वही ख़बर बन जाती है संवेदनाओं का, भावनाओं का स्त्रोत
जब निकल जाते हैं उससे ताल्लुक़ात,
दूर के ही सही
अबके बार ये ख़बर हफ़्ते भर रही मेरे साथ
शायद कुछ और दिन ठहरती ग़र रिश्ता और क़रीबी होता
लेकिन 
फ़िर भी ज़िंदगी की अख़बार के सफ़हे पलटने तो थे
वही कुछ छोटी कुछ मोटी ख़बर
कुछ बड़ी कुछ तगड़ी ख़बर
जो पढ़ लिये और नहीं भी
जो सुन लिये और नहीं भी

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

हाथरस



कठुआ, उन्नाव, हाथरस
छाया सघन घोर तमस
स्त्री-जीवन हर ओर पीड़ित
चोटिल देह प्राण कुपित

न कोई सुनवाई, न कोई पेशी
फिर रही वो लिए
टूटी रीढ़ व जीभ कटी
फेंक दी जाती सरेआम अधनंगी लाश
न हो रहा दोषियों को कारावास

नाकामी छुपा ली खाकी ने अपनी
करके बच्ची का जबर संस्कार
पर बेहद दुःखद है ख़त्म न हो रहा 
उद्दंड पुरुष का यह विकार

दोहराया जा रहा अलबत्ता फिर वही एक बार
लिख रहे कवि छंद और उत्कृष्ट अलंकार
कड़ी निंदा से भर गए अख़बार
सोशल मीडिया पर लग गया हैशटैग का अंबार

होगी न्यूज़रूम से खोखली हुंकार
'हैंग द रेपिस्ट्स' की लगेगी निष्फल गुहार
कानून-व्यवस्था कटघरे में होगी फिर एक बार
होगा तर्क-वितर्क, मीमांसा, सत्य-असत्य पर विचार

सब सो जाएंगे पुनः कुम्भकर्ण की नींद
तब तक जब तक फिर न ऐसा कुछ घटे 
किसी का सर न कटे, किसी का माथा न फटे
सब हो जाएगा सामान्य यूँ ही हर बार
सिलसिलेवार लगातार बारंबार

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

निज़ाम

चंद ही निज़ाम हैं यहाँ
वरना हर कोई किसी न किसी का ग़ुलाम है यहाँ

यूँ तो सबकी ज़िंदगी में कुछ न कुछ ख़ास है
पर किसी किसी की चर्चा-ए-आम है यहाँ

रक़बत की अंधी दौड़ में रंजिश ही पालते हैं लोग
एक दूसरे का यहाँ एहतराम कहाँ

मार-काट, लूट-पाट मची है चारों तरफ़ हरसू
सरकार कोई भी आए जाए, इन विकृतियों पर विराम कहाँ

सरस्वती और लक्ष्मी की लड़ाई में लक्ष्मी ही जीत रही है सदा
ज्ञान-चक्षु  जन्म-जन्मांतर से बंद, 
फिर भी ख़ुद को हर कोई महाज्ञानी समझता है यहाँ

इंसान भी कैसा जीव है, मंगल पर जीवन का अंश ढूँढता है
पृथ्वी पर पंचतत्व होते हुए भी मची है त्राहि-त्राहि, 
इसका किसी को संज्ञान कहाँ

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

ख़ुमारी



ख़ुमारी...
ख़ुमारी पुरानी तस्वीरों की
ख़ुमारी पुराने लम्हातों की
ख़ुमारी पुराने रिश्तों की
ख़ुमारी पुराने जज़्बातों की
ये ख़ुमारी अच्छी है
तब तक जब तक 
किसी बीमारी में न तबदील हो जाये

ख़ुमारी में रहो इस वक़्त की
ख़ुमारी में रहो मुसाफ़िर-ए-सम्त की
ख़ुमारी में रहो अपनों के उल्फ़त की
ख़ुमारी में रहो बू-ए-मोहब्बत की
इस ख़ुमारी में डूबे रहो 
तब तक जब तक
ये ज़िन्दगी ख़ुदा के हाथों ज़ब्त न हो जाये 

खुशी है एक मृगतृष्णा

कभी किसी चेहरे को गौर से देखा है हर मुस्कुराहट के पीछे ग़म हज़ार हैं क्या खोया क्या पाया, हैं इसके हिसाब में लगे हुए जो है उसकी सुद नहीं, जो...