अरे हाँ! तुम्हारी सोच की क्षुद्रता देखकर
बिना जाने ही अपनी राय बना लेते हो
किसी की बस सूरत देख उसकी कुंडली निकाल लेते हो
किसी के पहनावे को देख उसका चरित्र बता देते हो
मंदिर में देवी की पूजा करते हो
और सड़क पर जाती लड़की के तन-मन को चुभती नजरों से भेदते हो
गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ाते हो
और अमीरों की अमीरी से जलते हो
किसी की ख़ामोशी को उसकी कमज़ोरी समझ लेते हो
तो किसी के बड़बोलेपन को बदसलूकी
किसी को अपना हमराज़ बताते हो और उसी के राज़ को राज़ नहीं रखते
बाहर लोगों को तहज़ीब सिखाते हो
घर में माँ को खरी-खोटी सुनाते हो
कैसे कर लेते हो ये सब...
दुख होता है तुम्हारी क्षुद्रता देख कर
अरे हाँ! तुम्हारी सोच की क्षुद्रता देखकर
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