"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

क्षुद्रता



दुख होता है तुम्हारी क्षुद्रता देखकर
अरे हाँ! तुम्हारी सोच की क्षुद्रता देखकर
बिना जाने ही अपनी राय बना लेते हो
किसी की बस सूरत देख उसकी कुंडली निकाल लेते हो
किसी के पहनावे को देख उसका चरित्र बता देते हो
मंदिर में देवी की पूजा करते हो
और सड़क पर जाती लड़की के तन-मन को चुभती नजरों से  भेदते हो
गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ाते हो
और अमीरों की अमीरी से जलते हो 
किसी की ख़ामोशी को उसकी कमज़ोरी समझ लेते हो
तो किसी के बड़बोलेपन को बदसलूकी
किसी को अपना हमराज़ बताते हो और उसी के राज़ को राज़ नहीं रखते
बाहर लोगों को तहज़ीब सिखाते हो
घर में माँ को खरी-खोटी सुनाते हो  
कैसे कर लेते हो ये सब... 
दुख होता है तुम्हारी क्षुद्रता देख कर
अरे हाँ! तुम्हारी सोच की क्षुद्रता देखकर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

खुशी है एक मृगतृष्णा

कभी किसी चेहरे को गौर से देखा है हर मुस्कुराहट के पीछे ग़म हज़ार हैं क्या खोया क्या पाया, हैं इसके हिसाब में लगे हुए जो है उसकी सुद नहीं, जो...