"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

समझौता



लो कर लिया समझौता देकर अपने प्यार का बलिदान
पर माफ़ करना उसे पूरी तरह अपना न सकी

लो हो गयी सुहागन, कर लिया ख़ुद को इश्क़-गली में बदनाम
पर माफ़ करना तेरे सिंदूरी इश्क़ को ठुकरा न सकी

लो कर दिया कल रात अपने जिस्म को नीलाम
पर माफ़ करना तुम्हारे प्यार को न कर सकी

लो दे दिया उसे छूने का हक़ रख के ताख पर दीन-ओ-ईमान
पर माफ़ करना तेरी छुअन को न भुला सकी

लो कर दिया अपने अधरों को किसी और के नाम
पर माफ़ करना तेरी अधरों के स्पर्श को बिसरा न सकी

लो अब रोज़ो-शब रहेगी महफ़ूज़ किसी और की हिफ़ाज़त में तुम्हारी जान
पर माफ़ करना तेरी बाहों की गिरफ़्त में मिला जो सुकून पा न सकी

लो दे दिया धोखा ख़ुद को भी और हो गयी उसकी तमाम
पर माफ़ करना फ़िर भी तेरा दर्जा उसे दे न सकी

लो कर ली कोशिश के लिख दूँ दिल पे किसी और का नाम
पर माफ़ करना मेरी धड़कनों पर है इक तेरा ही नाम, 
इस बात को झुठला न सकी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

खुशी है एक मृगतृष्णा

कभी किसी चेहरे को गौर से देखा है हर मुस्कुराहट के पीछे ग़म हज़ार हैं क्या खोया क्या पाया, हैं इसके हिसाब में लगे हुए जो है उसकी सुद नहीं, जो...