"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" ~ निदा फ़ाज़ली

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

पारस्परिक प्रेम

 


तन यहाँ मन कहाँ-कहाँ
प्रेम बिनु पंछी खिड़े जहाँ-तहाँ
वो विवाहित या विवाहिता
जिसके हिस्से
प्रेम नहीं पड़ता
बड़े अभागे कहलाते हैं

यह और भी हृदय का शूल
साबित होता है जब
जोड़े में से कोई एक
कलुषित प्रेम में उद्भ्रांत हो

वंश के विस्तार हेतु किया गया
बिस्तर वाला कर्तव्यबद्ध-प्रेम
या कामुकता की नैसर्गिक तृष्णा शांत करने हेतु
की गई उत्साहित यौन-क्रीड़ा 
एक शरीरिक संबंध तो स्थापित कर सकता है
प्रेम नहीं

प्रेम की वास्तविक अनुभूति
किसी छुअन का मोहताज नहीं
किसी की स्नेहिल आँखों को देखकर भी
एक सात्विक प्रेम की नींव रखी जा सकती है

दो लोगों के परिणय में
पारस्परिक प्रेम की गुंजाइश हमेशा हो सकती है
इसे समझौता हमने ही बनाया है
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कलुषित- अपवित्र, निंदित
उद्भ्रांत- भटका हुआ, गुमराह 
नैसर्गिक- स्वाभाविक, प्राकृतिक 

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

मसान की भट्ठी

 

मौत आई तो किसी की एक न चली
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम,
सबकी जान पर बनी
अस्थि-पंजर सब राख हो गए
कि चिता जल कर ख़ाक हो गई
गिर रहीं अनगिनत लाशें रोज़ाना
कैसी जानलेवा ये आग फैल गई

मसान की भट्ठी भी नहीं है शांत
न तो क़ब्र की खुदाई ही रुक रही
रुदन-क्रंदन के स्वर हैं कानों में पहरों-पहर गूँजते
ये बेहिसाब मौतें बस 
झूठे आँकड़ों में सिमट कर रह गईं

ये क़ौमी "जुलूस-ताजिये" निकालना छोड़ दो
के मौत मज़हब नहीं देखती
एक दूसरे की बस ख़ैर मांगो
के ज़िन्दगी में और बड़ी तलब नहीं होती
जो बन सको तो एक-दूजे का "ऑक्सीजन" बनो
ज़हर तो हवा में भी घुल चुकी है
इसकी हरगिज़ कमी नहीं

सरकारों का क्या, आयेंगी जायेंगी
कुर्सी ही उनका सर्वस्व है,
वो तो उसे ही बचायेगी
तुम अपनी मांगें सही रखो
"मंदिर-मस्जिद" काफ़ी हैं,
पाठशाला-अस्पताल मांगो
ऊपरवाला खूब महफ़ूज़ है,
तुम अपनी ख़ैर तो सोचो

प्रजा सबल बनो जो गद्दी का ख़ौफ़ न करे
प्रजा सजग  बनो जो अपनी मांग सही रखे
वरना
"राजा राम" नहीं जो बिन कहे कष्ट हर लें
"राजा राम" नहीं जो बिन कहे कष्ट हर लें

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

त्रासदी



आग लगी, भगदड़ मची, शोर हुआ
सब एक-दूसरे को धक्का दे भागने लगे आयें-बांयें
सारे उस धधकती आग के डर से चीखने-पुकारने लगे
कुछ तो आनन-फानन में खिड़की से ही कूदने लगे
तो कुछ उस जानलेवा आग की लपटों में झुलसने लगे
और अंततः मौत की भेंट चढ़ गए
जब कोई आपदा आती है तब बुद्धि किसकी काम करती है भला
और दूसरे लोग तो बस तमाशबीन
स्मार्टफोन निकाला और लगे वीडियो बनाने
सारी मानसिकता व नैतिकता रख दी है ताख पर
जाने कौन-सी आग की लपटों का शिकार हो गई है मनुष्यता
बहुत भारी त्रासदी है ये हमारी 'टेक-सैवी' पीढ़ी का
मानो या ना मानो!!!

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

तरक्की

 


इंसान तरक्की कर रहा है
आधुनिक युग का इंसान खूब तरक्की कर रहा है
दिन दुगुनी रात चौगुनी कर रहा है
हो भी क्यूँ न!
उन्नत प्रौद्योगिकी युग है
घंटों का काम मिनटों में संभव है
अभियांत्रिकी की देन है यह अद्भुत क्रांति
पैसा इफ़रात है,
और अर्जित करने में लगा हुआ है आदमी
मंहगाई जो सीमाएं लांघ रही है
पर धनोपार्जन की इस अंधी दौड़ में
ये इंसान अत्यंत खालीपन व रिक्तता से गुज़र रहा है
भावनाओं का खालीपन और रिश्तों में रिक्तता
इंसान यहाँ भी अप्रतीम तरक्की कर रहा है
दिन दुगुनी रात चौगुनी कर रहा है
समझ नहीं आता!
इसे इंसान का उत्थान कहें या पतन?

खुशी है एक मृगतृष्णा

कभी किसी चेहरे को गौर से देखा है हर मुस्कुराहट के पीछे ग़म हज़ार हैं क्या खोया क्या पाया, हैं इसके हिसाब में लगे हुए जो है उसकी सुद नहीं, जो...